नौबतखाने में इबादत (यतींद्र मिश्र) CBSE बोर्ड बूस्टर: 30 सर्वश्रेष्ठ पिछले वर्ष के प्रश्न और उत्तर

यह प्रश्नोत्तर शृंखला CBSE बोर्ड परीक्षा पैटर्न पर आधारित है, जो आपको इस पाठ के गहन विश्लेषण में मदद करेगी।

खंड 'क' - अति संक्षिप्त उत्तरीय प्रश्न (VSA) (1 अंक)

1. प्रश्न: 'नौबतखाने में इबादत' पाठ किसके जीवन पर आधारित है? उत्तर: यह पाठ भारतरत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के जीवन पर आधारित है।
2. प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ का बचपन का नाम क्या था? उत्तर: उनके बचपन का नाम कमरुद्दीन था।
3. प्रश्न: इबादत का अर्थ क्या होता है? उत्तर: इबादत का अर्थ 'उपासना' या 'पूजा' होता है।
4. प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ किस वाद्य यंत्र को बजाने के लिए प्रसिद्ध थे? उत्तर: वे शहनाई वाद्य यंत्र को बजाने के लिए प्रसिद्ध थे।
5. प्रश्न: शहनाई किस प्रकार का वाद्य यंत्र है? उत्तर: शहनाई 'फूँककर' (सुषिर वाद्य) बजाया जाने वाला वाद्य यंत्र है।
6. प्रश्न: बालाजी मंदिर तक पहुँचने के लिए किस रास्ते पर शहनाई वादन होता था? उत्तर: बालाजी मंदिर तक पहुँचने के लिए 'दालमंडी' और 'कुलसुम हलवाइन' की दुकान के रास्ते पर शहनाई वादन होता था।
7. प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ को सबसे बड़ा पुरस्कार कौन-सा मिला? उत्तर: उन्हें भारत का सर्वोच्च सम्मान 'भारतरत्न' मिला।
8. प्रश्न: शहनाई को किस मौके पर 'मंगल ध्वनि' का वाद्य कहा जाता है? उत्तर: शहनाई को मांगलिक अवसरों जैसे विवाह (शादी), पूजा आदि पर 'मंगल ध्वनि' का वाद्य कहा जाता है।
9. प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ किसे अपनी सबसे बड़ी 'नेमत' मानते थे? उत्तर: वे अपने खुदा से शहनाई बजाने के लिए 'सच्चा सुर' माँगना अपनी सबसे बड़ी 'नेमत' मानते थे।
10. प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ को काशी क्यों प्रिय थी? उत्तर: उन्हें काशी इसलिए प्रिय थी क्योंकि वह उनकी जन्मभूमि थी और वहाँ संगीत तथा धार्मिक सद्भाव की अनूठी परंपरा थी।

खंड 'ख' - संक्षिप्त उत्तरीय प्रश्न (SA) (2/3 अंक)

11. प्रश्न: 'नौबतखाने में इबादत' शीर्षक का आशय स्पष्ट कीजिए। (CBSE PYQ) उत्तर: 'नौबतखाना' उस प्रवेश द्वार को कहते हैं जहाँ बैठकर मंगलिक अवसरों पर शहनाई बजाई जाती थी। 'इबादत' का अर्थ पूजा या प्रार्थना होता है। इस शीर्षक का आशय है कि बिस्मिल्ला खाँ के लिए संगीत केवल मनोरंजन नहीं था, बल्कि वह उनकी सच्ची साधना, प्रार्थना और ईश्वर की इबादत थी, जिसे वे बालाजी मंदिर के नौबतखाने में बैठकर करते थे।
12. प्रश्न: शहनाई को 'मंगल ध्वनि' का वाद्य क्यों कहा गया है? (CBSE PYQ) उत्तर: शहनाई को मंगल ध्वनि का वाद्य इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह अत्यंत मधुर, कोमल और कर्णप्रिय वाद्य यंत्र है। इसका उपयोग सदियों से मांगलिक अवसरों, जैसे विवाह, जन्मोत्सव और धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता रहा है। यह ध्वनि सुख, समृद्धि और शुभता का प्रतीक मानी जाती है।
13. प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ और काशी एक-दूसरे के लिए क्यों अनिवार्य थे? (CBSE PYQ) उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ और काशी एक-दूसरे के लिए अनिवार्य थे क्योंकि बिस्मिल्ला खाँ की संगीत साधना और शहनाई की कला काशी की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग थी। काशी के बालाजी मंदिर और विश्वनाथ मंदिर से बिस्मिल्ला खाँ का संगीत जुड़ा था। बिस्मिल्ला खाँ काशी की गंगा-जमुनी संस्कृति (हिंदू-मुस्लिम सद्भाव) का प्रतीक थे, इसलिए वे एक-दूसरे के पूरक थे।
14. प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से हमें कौन-सी सीख मिलती है? उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि धर्मनिरपेक्षता और मानवता ही सर्वोच्च धर्म है। इसके अलावा, हमें अपने काम को पूरी निष्ठा और समर्पण से करना चाहिए। अपनी कला या काम के प्रति सच्ची इबादत की भावना रखनी चाहिए।
15. प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ किस प्रकार हिंदू-मुस्लिम सद्भाव की मिसाल थे? उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ मुस्लिम होते हुए भी हिंदू मंदिरों (बालाजी और विश्वनाथ) में शहनाई बजाते थे। वे गंगा किनारे बैठकर रियाज़ करते थे और मुहर्रम में अपनी पूरी फ़ौज के साथ शोक मनाते थे। उनका संगीत दोनों धर्मों के प्रति समान आस्था और श्रद्धा व्यक्त करता था।
16. प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ फटी हुई लुंगी क्यों नहीं बदलते थे? उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ फटी हुई लुंगी इसलिए नहीं बदलते थे क्योंकि वे मानते थे कि दौलत भले ही न हो, पर 'सुर' में मिठास होनी चाहिए। वे बाहरी दिखावे से दूर रहते थे और मानते थे कि संगीत का असली महत्त्व आत्मा की शुद्धता में है, न कि वेशभूषा में।
17. प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ बालाजी मंदिर में शहनाई क्यों बजाते थे? उत्तर: बालाजी मंदिर और विश्वनाथ मंदिर उनकी आस्था के केंद्र थे। उनके मामा, अली बख्श, वहीं शहनाई बजाते थे। कमरुद्दीन (बिस्मिल्ला खाँ) को बचपन से ही वहाँ शहनाई से लगाव हो गया था। वे उस संगीत को अपनी इबादत मानते थे।
18. प्रश्न: मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ का क्या संबंध था? उत्तर: मुहर्रम के दौरान, बिस्मिल्ला खाँ का परिवार और वे स्वयं शोक मनाते थे। वे मुहर्रम के दसवें दिन शहनाई नहीं बजाते थे। वे लगभग आठ किलोमीटर तक पैदल रोते हुए नौहा (शोक गीत) गाते थे, जो इमाम हुसैन के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा को दर्शाता है।
19. प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई की दुनिया में पहली गुरु कौन थीं? उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई की दुनिया में पहली गुरु उनकी माँ नहीं, बल्कि उनके मामा और बालाजी मंदिर की मंगल ध्वनि परंपरा थी। लेकिन उन्हें संगीत की दीक्षा देने वाले उनके मामा अली बख्श और नानी थे।
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20. प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ हमेशा खुदा से क्या माँगते थे? उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ खुदा से हमेशा अपनी शहनाई के लिए 'सच्चा सुर' माँगते थे। वे चाहते थे कि उनकी शहनाई से हमेशा ऐसा सुर निकले जो लोगों के दिलों को छू जाए और उन्हें सुकून दे।

खंड 'ग' - दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (LA) (4/5 अंक)

21. प्रश्न: 'बिस्मिल्ला खाँ' के चरित्र की उन विशेषताओं पर प्रकाश डालिए, जो उन्हें एक सच्चे कलाकार और महान इंसान बनाती हैं। (CBSE PYQ) उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ: 1. संगीत के प्रति समर्पण: वे शहनाई को अपनी इबादत मानते थे और आजीवन सच्चे सुर की तलाश में रहे। 2. धार्मिक सद्भाव: वे मुस्लिम होते हुए भी काशी के बालाजी मंदिर में शहनाई बजाते थे और गंगा-जमुनी संस्कृति के प्रतीक थे। 3. सादगी और आडंबरहीनता: वे फटी लुंगी में रहते थे और बाहरी दिखावे से दूर थे। 4. विनम्रता: भारतरत्न मिलने के बाद भी वे अहंकार से दूर रहे और हमेशा खुदा से सच्चे सुर की माँग करते रहे।
22. प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से हमें भारतीय संस्कृति की किस अनूठी विशेषता का पता चलता है? (CBSE PYQ) उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से भारतीय संस्कृति की **गंगा-जमुनी तहज़ीब** (हिंदू-मुस्लिम सद्भाव) की अनूठी विशेषता का पता चलता है। वे एक मुस्लिम कलाकार थे जो हिंदू देवी-देवताओं (बालाजी) के मंदिर में शहनाई बजाते थे। मुहर्रम के प्रति उनकी गहरी आस्था थी, वहीं वे गंगा और काशी विश्वनाथ को भी उतना ही सम्मान देते थे। उनका संगीत धर्म की दीवारों को तोड़ता था और सिद्ध करता था कि कला और आस्था किसी एक धर्म तक सीमित नहीं होती।
23. प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ को काशी विश्वनाथ से दूरी क्यों गवारा नहीं थी? काशी के प्रति उनकी भावनाएँ स्पष्ट कीजिए। (CBSE PYQ) उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ को काशी विश्वनाथ से दूरी इसलिए गवारा नहीं थी क्योंकि काशी उनकी जन्मभूमि और कर्मभूमि थी। काशी उनके लिए सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि उनके संगीत की आत्मा थी। 1. आस्था: बालाजी मंदिर और विश्वनाथ मंदिर में शहनाई बजाना उनकी इबादत थी। 2. संस्कृति: वहाँ का संगीत, वहाँ के लोग, और वहाँ की गंगा-जमुनी संस्कृति उनके जीवन का अभिन्न अंग थे। 3. पहचान: उनकी शहनाई की पहचान काशी से जुड़ी थी। इसलिए वे काशी छोड़कर कहीं और नहीं बसना चाहते थे।
24. प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई की दुनिया में पहली गुरु कौन थीं और उनका संगीत किन लोगों तक पहुँचता था? उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई की दुनिया में पहली गुरु उनके मामा अली बख्श और बालाजी मंदिर की परंपरा थी। उनका संगीत केवल उच्च वर्ग के लोगों या राजाओं तक सीमित नहीं था, बल्कि वह मंदिर के नौबतखाने में बैठकर बजाते थे, जिससे उनका संगीत आम आदमी, विशेषकर मेहनतकश लोग (दालमंडी की कुलसुम हलवाइन, रिक्शेवाले, आदि) तक पहुँचता था।
25. प्रश्न: लेखक ने संगीत को 'इबादत' क्यों कहा है? संगीत और धार्मिक अनुष्ठानों के संबंध को स्पष्ट कीजिए। उत्तर: लेखक ने संगीत को 'इबादत' इसलिए कहा है क्योंकि बिस्मिल्ला खाँ के लिए संगीत केवल कला नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और ईश्वर के प्रति समर्पण का माध्यम था। धार्मिक अनुष्ठानों से संबंध: 1. शहनाई का मंगल वाद्य होना इसे हर हिंदू पूजा-पाठ से जोड़ता है। 2. बिस्मिल्ला खाँ मुहर्रम में शोक मनाते थे और बालाजी में इबादत करते थे। 3. उनका मानना था कि संगीत का सच्चा सुर ईश्वर का ही आशीर्वाद है, जो संगीत को पूजा के समान बनाता है।
26. प्रश्न: 'काश! कोई मुझे एक सीधा-सा रास्ता बता देता कि मैं क्या करूँ और क्या नहीं।' बिस्मिल्ला खाँ ने यह क्यों कहा? उत्तर: यह कथन उनकी गहरी संगीत साधना और सच्चे सुर की तलाश को दर्शाता है। वे संगीत की ऊँचाई पर पहुँचने के बावजूद यह महसूस करते थे कि अभी भी उनसे कुछ छूट रहा है। सच्चा सुर इतना मुश्किल है कि वे हमेशा एक मार्गदर्शक की तलाश में रहते थे जो उन्हें उस परम सुर तक पहुँचने का सीधा रास्ता बता दे। यह उनकी चरम विनम्रता और सीखने की लालसा को दर्शाता है।
27. प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ की आर्थिक स्थिति कैसी थी? इससे उनके चरित्र की क्या विशेषताएँ पता चलती हैं? उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। वे अक्सर फटी लुंगी में दिखाई देते थे। इससे उनके चरित्र की विशेषताएँ पता चलती हैं: 1. आडंबरहीनता: उन्हें धन, भौतिक सुख या बाहरी दिखावे से कोई मोह नहीं था। 2. कला के प्रति समर्पण: उनके लिए 'सुर' (कला) धन (दौलत) से बहुत ऊपर था। 3. सादगी: वे सादगीपूर्ण जीवन जीने में विश्वास रखते थे, जो उनके सच्चे साधक होने का प्रमाण है।
28. प्रश्न: पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि काशी की क्या-क्या विशेषताएँ थीं? उत्तर: काशी की विशेषताएँ: 1. सांस्कृतिक केंद्र: यह कला और संस्कृति का केंद्र रही है, जहाँ संगीत की लंबी परंपरा रही है। 2. धार्मिक महत्व: काशी विश्वनाथ और बालाजी मंदिर जैसे तीर्थस्थल यहीं हैं। 3. गंगा-जमुनी तहज़ीब: यहाँ हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लोग एक साथ मिलकर रहते और त्यौहार मनाते हैं, जिसका प्रतीक बिस्मिल्ला खाँ स्वयं थे।
29. प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ ने एक बार एक शिष्या को फटकार क्यों लगाई? इससे उनकी किस मानसिकता का पता चलता है? उत्तर: एक बार उन्होंने एक शिष्या को इसलिए फटकार लगाई क्योंकि मुहर्रम के दौरान शिष्या ने बिस्मिल्ला खाँ के शहनाई न बजाने पर कहा कि 'यह क्या मुहर्रम? यहाँ शहनाई क्यों नहीं बजती?' यह सुनकर उन्होंने शिष्या को डाँटा। इससे उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के प्रति गहरी श्रद्धा का पता चलता है। वे मानते थे कि हर अवसर का अपना एक सम्मान और मर्यादा होती है।
30. प्रश्न: बिस्मिल्ला खाँ संगीत को किस प्रकार एक 'सम्मानजनक' और 'पवित्र' कार्य बनाते हैं? उत्तर: बिस्मिल्ला खाँ संगीत को सम्मानजनक और पवित्र बनाते हैं: 1. इबादत मानना: वे शहनाई बजाने को अल्लाह के प्रति अपनी प्रार्थना मानते थे, जिससे संगीत की पवित्रता बढ़ती है। 2. साधना: वे सुबह बालाजी मंदिर के नौबतखाने में बैठकर रियाज़ करते थे, जो संगीत के प्रति उनकी तपस्या और समर्पण को दर्शाता है। 3. आडंबर से दूरी: उन्होंने कभी धन या नाम के लिए अपनी कला का दुरुपयोग नहीं किया, जिससे संगीत की गरिमा बनी रही।

यह अध्याय 9 का संशोधित पोस्ट है।

चूँकि हमने **'क्षितिज भाग-2'** के सभी गद्य और काव्य खंड पूरे कर लिए हैं, हम अब **'कृतिका भाग-2'** की ओर बढ़ेंगे। अगला पोस्ट **'माता का अँचल'** पर केंद्रित होगा। क्या हम इस अगले चरण के लिए तैयार हैं?

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